Friday 4 November 2011

राम ने सीता से कहा, मैं तुम्हारे लिए नहीं लड़ा


"हिन्दुइस्म धर्म या कलंक के सौजन्य से :एल आर बाली जी द्वारा लिखित"
राम के बारे में मैं पहले लिख चुका हूं। राम ने सीता से क्या कहा, पढ़िए वाल्मीकि रामायण के हवाले से।
1. रावणाकपरिक्लीषटान........................(२०) से (२४)  (सर्ग ११५, युद्धकांड) अर्थात :१. रावण तुमको अपनी गोद में उठा कर ले गया. वह तुम पर अपनी दूषित दृष्टि डाल चुका है ऐसी अवस्था में अपने कुल को महान मानने वाला मैं तुम्हें कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? (२०) भद्रे, मेरा यह निश्चित विचार है. तदनुसार ही मैंने तुम्हें सब कुछ कहा है. तुम चाहो तो लक्ष्मण के साथ रह सकती और, चाहो तो भरत के साथ रह सकती हो (२२) सीता, तुम्हारी इच्छा हो तो तुम शत्रुघ्न, बंदरों के राजा सुग्रीव अथवा राक्षसराज विभीषण के पास भी रह सकती हो तुम्हें जहां रहना अच्छा लगे वहीँ रह सकती हो (२३) हे सीता, मुझे लगता है की तुम्हारे जैसी रूपवती नारी को अपने घर में देख कर रावण चिरकाल तक तुम से दूर ही नहीं रह सका होगा.(२४)

2 .अषासी.............त्वया (१२ से १८) अर्थात :- भद्रे, समरांगन में शत्रु को पराजित करके मैंने तुझे उसके चंगुल से छुड़ा लिया है पुरुषार्थ के द्वारा जो कुछ संभव था, वह सब मैंने किया है.(१२) अपने तिरस्कार का बदला चुकाने के लिए मनुष्य का जो कर्तव्य है, वह सब मैंने अपनी मानरक्षा की अभिलाषा से रावण का वध करके पूरा किया(१३) किन्तु, तुम्हें मालूम होना चाहिए की मैंने जो यह सारा परिश्रम किया है, मित्रों की सहायता से युद्ध में विजय पाई है, वह तुम्हें प्राप्त करने के लिए नहीं था (१५) तुम पर संदेह किया जा सकता है, फिर भी तुम मेरे सामने खड़े हो  जैसे आँख के रोगी को दीपक की ज्योति नहीं सुहाती, उसी प्रकार आज तुम भी मुझे अत्यंत अप्रिय लग रही हो (१७) जनक कुमारी,तुम स्वतन्त्र हो, तुम्हारी जहाँ इच्छा हो चली जाओ. दसों दिशाएं तुम्हारे लिए खुली हैं अब से मुझे तुम से कोई प्रयोजन नहीं (१८) 
3. राम का एक गुण यह भी बताया गया है कि वह एकपत्नीव्रत थे। लेकिन बाल्मीकि ने  राम की बहुत सी पत्नियों की ओर इशारा किया है.(मंथरा कैकेयी को कहती है कि राम की स्त्रियाँ, न कि स्त्री, प्रसन्न होंगी-हृष्ट:खलु भविष्यन्ति रामस्य स्त्रीय: | (बाल्मीकि रामायण,अयोध्या कांड ८/१२) 
एक और उदाहरण। दक्षिणा...............विशारदा: (७-४२-२१) अर्थात : उस समय नाचने गाने में कुशल,बहुत सी चतुर तथा रूपवती स्त्रियाँ शराब से मस्त होकर राम के आगे नाचने लगी. मनोअमिरामा.................परम्भुशिता: (७-४२-२२) अर्थात : रमण करने वालों में श्रेठ राम ने मनमोहक और बहुत अच्छी प्रकार से सजी हुई उन स्त्रियों से रमण किया.
कुछ पाठकों ने अपना ब्लॉग के संपादक से शिकायत की है कि मैंने ऊपर जो लिखा है, वह अपने मन से लिख रहा हूं। मैं ऐसे सभी पाठकों से आग्रह करता हूं कि वे खुद वाल्मीकि रामायण खरीद कर पढ़ें और अगर वह संभव न हो तो इस लिंक पर क्लिक करें। यहां पूरी रामायण टीका समेत दी गई है। सर्ग की जगह चैप्टर खोजें। मसलन सर्ग 115 के लिए चैप्टर 115 देखें। आपको स्वयं पता चल जाएगा कि सत्य क्या है। मेरा मकसद भी पाठकों को सत्य से परिचित कराना है।

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