Friday 4 November 2011

वेद- विज्ञान के उलट और और झूठ का पुलिंदा


" वेदों में मूर्खताओं के सिवा कुछ नहीं है" ये शब्द बाबासाहब ने कहे थे मगर उस समय किसी की हिम्मत नहीं हुई जो बाबासाहब के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा सके या अपनी जबान भी खोल सके.
वेदों में ज्ञान के तौर पर कुछ नहीं है किन्तु विज्ञान के उलट बहुत कुछ सारी बातें है, जैसे पृथ्वी खड़ी है, वह अन्नरस से पूर्ण करती है, वह दूध देती है;(२) सूर्य रथ पर सवार घूमता है;(३) सूर्य ग्रहण के समय सूर्य की स्व्भार्नु नामक असुर आ दबोचता है और अत्री व अत्रिपुत्र उसे असुर को मुक्त करते है, तब समाप्त होता है. ( ऋग्वेद ८/४०/५)
( फिर तो आज के वैज्ञानिक गधे है जो ग्रहण के समय चश्मा लगा-लगा सूर्य की तरफ एक टक देखे जाते है या फिर आम जन मूर्ख है जो ग्रहण वाले दिन सूर्य की तरफ देखते है उन्हें आज तक कोई असुर नहीं नजर आया) 
वेदों को मूर्खताओं का पुलंदा मानते हुए 'चार्वाक' दार्शनिक ने अपनी टिपण्णी में इस प्रकार कहा था : (critique on Vedas 
P. 43)त्रयो..........................................................कुत: अर्थात : तीन प्रकार के व्यक्तियों यानी कपटियों,भांडों और ठगों ने वेदों की 
रचना की है. ये बुद्धिमान लोगों की रचनाएं नहीं है. वेदों पर आधारित वैदिक समाज के दुराचारों को देखते हुए श्रमण-संस्कृति के 
संचालक महामानव गौतम बुद्ध ने वेदों को "जल-विहीन रेगिस्तान" कहा है,"पथ-विहीन जंगल" कहा है, जो वास्तब में "विनाश-पथ" है. 
उन्होंने कहा है : " कोई भी आदमी जिसमें कुछ बौद्धिक तथा नैतिक प्यास है, वह वेदों के पास जा कर अपनी प्यास नहीं बुझा 
सकता" ( The buddha and His dhamm , Second Edition1974, p.60)बौद्ध दार्शनिक धर्म कीर्ति ने वेदों की बाबत अपने मार्ग दाता बुद्ध से भी ज्यादा स्पष्ट मत व्यक्त किया है. उन्होंने कहा था : वेद..........................................जाड्ये. अर्थात : वेदों की प्रमाणिकता, किसी इश्वर का सृष्ट कर्तापन, स्नान में धर्म की इच्छा रखना, जातिवाद  का घमंड, और पाप दूर 
करने के लिए शरीर को संताप देना ये पांच है अक्ल के मारे लोगों की मूर्खता की निशानियाँ ( महामानव बुद्ध,पेज १२७)लोकायात और चार्वाक कहते है : " आगम: धूर्त प्रणित" अर्थात वेद धूर्त लोगों ने तैयार किये है "त्रयो वेदस्य करतारो भंड धूर्त 
निशाचरा:" अर्थात तीनों वेदों के करता भांड, धूर्त और निशाचर है. "पशुपालन, खेती और व्यापार अभिमानास्पद व्यवसाय है, लेकिन जो लोग भस्म लगा कर यग्य कर्म करते है वह कामचोर, पौरुषहीन और बुद्धिहीन है देखिये ( भारतीय दर्शन-वैचारिक और सामाजिक संघर्ष, प्रष्ट ६९-७०)बीसवीं सदी के महानतम बुद्धिवादी नेता डॉ.आंबेडकर के मत में " veda are worthless books " यानी वेद व्यर्थ की पुस्तकें है. ( डॉ. बाबासाहब आंबेडकर राइटिंग्स स्पीचीज एंड, खंड ३, पृष्ठ ८)  मैक्स मूलर, जर्मन मूल के महान विद्वान्, जिन के व्यक्तित्व पर हिन्दुओं को बहुत नाज है, वेदों की बाबत इस प्रकार कहते है---" the historic importance of the Vedas can hardly be axaggerated , but this intrinsic merit , and particularly the beauty of elevation of its sentiments , have by many been rated far too high . A large number of Vedic hymns are childish in the extreme : tedious , low, common place ............(Chips from German Workshop , Vol . १ )but discover in it (e.e . in the Vedas ) steam Engine , Electricity and European philosophy and morality and you desprive  it of true character " (MAX  MULER : Autobiographical Essays Quoted in Tradition , Science and Society , Bangalore , 1990 , page 78 )अर्थात : वेदों के ऐतिहासिक महत्त्व को बढाया-चढ़ाया नहीं जा सकता, किन्तु बहुत सारे लोग उनके तात्विक गुणों, विशेषतया: भावनाओं के उन्नत-रूप को बहुत ही ऊँचे बताते है. वेदों के मन्त्रों की बहुत बड़ी तादाद (संख्या) अत्यधिक बचकाने है. तो भी वेदों में भाप-इंजिन, बिजली, यूरोपीय-दर्शन और नैतिकता की खोज करना उन को उनके सही स्वरूप से वंचित करना है. वेदों के एकमात्र ज्ञान स्त्रोत होने की शेखी बघारने वाले सोचें की क्या इस शताब्दी में वेदों का अनुसरण करके भारतीय समाज का नवनिर्माण किया जा सकता है.? आगे पढ़िए ( ब्राहमण ग्रन्थ : पागलों की चिल्लाहट)................................................. क्रमश:

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