Friday 4 November 2011

भगवान: नायक या खलनायक एपिसोड-३


"हिन्दुइस्म धर्म या कलंक के सौजन्य से :एल आर बाली जी द्वारा लिखित"
 
6. नाव में भोग करने वाला महारिषी : पराशर
वेद ब्यास के पिता महारिषी पराशर प्रसिद्ध ब्रह्मरिशियों में एक है और वे पराशर स्मृति नामक धर्मशास्त्र के प्रवर्तक भी है जो कलयुग के लिए मानी बताई जाती है.उन्होंने केवट राज की कन्या सत्यवती के गर्भ से व्यास को किस परिस्तिथि में उत्पन्न किया इसकी कथा महाभारत, आदि पर्व अध्याय ६८ में आई है ये महाराज एक बार तीरथ यात्रा को निकले की अकस्मात यमुना नदी को नाव के द्वारा पार करती हुई सत्यवती से इन महाराज की आँखें चार हो गई ये महाशय चले तो थे तीर्थ का पुण्य कमाने के लिए लेकिन इनकी आँखे लड़ गई वो भी अचानक ही यमुना नदी को नाव के द्वारा पार करती हुई सत्यवती से.चले तो थे तीर्थ यात्रा  का पुण्य कमाने पर यहाँ तो उन्होंने एक दूसरे ही तीर्थ में गोता  लगाने की ठान ली थी वे सत्य वती के अतुल रूप यौवन को देखते ही कामांध हो उठे और  सत्यवती के लाख मना करने पर भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आये और अपने समस्त ब्रह्मतेज तथा योगबल को भाड़ में झोंक कर अपनी काम पिपासा को शांत करने की जुगत में लग गए.महरिशी का मैथुन विषयक प्रस्ताव सुन कर सत्यवती ने कहा की हे ऋषिराज  ! नदी के दोनों किनारों पर ऋषियों के आश्रम है वहां पर ऋषि लोग खड़े है. उन लोगों के सामने हम दोनों का मिलना किस प्रकार हो सकता है ? इस पर ऋषि राज ने निहार (कुहेसा) (फोग) उन्पन्न कर दिया जिसमें सम्पूर्ण देश अंधकारमय हो गया. जब सत्यवती ने देखा की उसकी पहली आप्त्ती बेकार चली गई है तो उसने दूसरी अड़चन डाल कर इस पाप कर्म को रोकने का असफल प्रयास किया,मगर ऋषिराज के सर पर तो कामदेव
सवार हो चुके थे और इस मौके को कैसे हाथ से जाने देते फिर भी सत्यवती बोली विद्धि मान ..............यद्न्न्ताराम (७६)अर्थात:सत्यवती ने कहा, हे भगवान्!मुझे अपने पिता की वाश्वर्तिनी एक कन्या समझिये, हे पाप रहित महारिषी, आपके समागम से मेरा कन्या-भाव नष्ट हो जाएगा (७५) मेरे इस कन्या भाव के इस प्रकार नष्ट हो जाने पर, हे द्विज श्रेष्ठ, मैं अपने घर कैसे जा सकुंगीं और किस प्रकार जी सकूंगी.?हे बुद्दी संम्पन्न, इन सब बातों पर तनिक विचार कर जो करना हो उसे कीजिये पर महारिषी सत्यवती की इस उचित विनय को कहाँ मानने वाले थे वो तो कामदेव के वशीभूत हो सातवें आसमान पर उडान भर रहे थे उन्होंने बेचारी सरल ह्रदय धीवर-कन्या को अपने जाल में फंसा कर अपनी महोकामना को पूरा करके ही दम लिया. अब आप ही बताओ क्या महारिषी के द्वारा किया गया यह कृत्य नैतिक था.
7. मेनका का प्रेमी तपस्वी : विश्वामित्र
 विश्वामित्र ने मेनका की रूप राशी पर एकदम मोहित  होकर अपनी सारी तपस्या को एक बारगी पूरी तरह से मिटटी में ही मिला दिया था और जिसके फलस्वरूप दुष्यंत की प्रेमिका शकुन्तला का जन्म हुआ.इस घटना का विवरण महाभारत, आदि पर्व, अद्ध्याय ७२ में आया है. महारिषी विश्वामित्र की विकट और घोर तपस्या को देखकर
देवराज इन्द्र को यह भय हुआ की कहीं महारिषी अपनी तपस्या से इन्द्र पद ही न छीन ले.अत: उसने विश्वामित्र का तप भंग करने के लिए मेनका अप्सरा को उनके
करीब भेजा. वह महारिषी के सामने जाकर क्रीडा करने लगी की इतने में पवन देव ने उस सर्वांग सुंदरी �����������े शारीर से उसके चंद्रिका शुभ वस्त्र को उड़ा दिया और उन्होंने अपने पास बुल�����या:-त्या...........(७)..........(८).............शकुंताम(९) अर्थात:ब्रहम ऋषियों  में श्रेष्ठ विश्वामित्र ने, उसके रूप और गुणों को देखकर काम के वश  में होते हुए उसके साथ समागम की इच्छा की (७)और उन्होंने उसे अपने पास बुलाया और अनिंदित सुंदरी, वह, भी काम उपभोग के लिए इच्छुक हो गई . उनदोनों ने वहां पर बहुत दिनों तक मनमाना विहार किया (8) मनमाना विहार करने से वह सुदीर्घ काल उन दोनों को एक दिन के समान प्रतीत हुआ.उस मुनि ने मेनका में शकुन्तला को उत्पन्न किया.(९)
8. रूपवती अप्सरा के प्रेमी: भरद्वाज    
 पुराणों एवं महाभारातादी ऐतिहासिक ग्रंथों में कितने महारिषियों के विषय में यह लिखा मिलता है की उनका वीर्य अमुक अप्सरा को देखते ही स्खलित हो गया जिसके फलस्वरूप अमुक व्यक्ति की उतपत्ति हुई. कुरुक्षेत्र के प्रसिद्द वीर द्रोणाचार्य का जन्म-वृत्तांत महाभारत आदि पर्व, अद्ध्याय १३१ में लिखा है की महारिषी एक बार गंगा-स्नान को गए, वहां पर द्रताची नामक अप्सरा के अलोकिक सौंदर्य को देखकर उनका भी बेईमान मन दोल गया और उनका वीर्य स्खलित हो गया उस वीर्य को
उन्होंने द्रोना नामक यग्य  पात्र में रख दिया जिससे उस पात्र से जन्में हुए बालक का नाम द्रोणा पडा.
9. तारा को बलपूर्वक  हरने वाला :
चन्द्र चन्द्र महारिषी अत्री के पुत्र है उन्हें सर्वगुण-संपन्न जानकार ब्रहमा जी ने नि:शेष ब्राहमणों,औषधियों तथा तारागणों   का अध्पति बनाया.चन्द्र ने त्रिभुवन को जीतकर राजसूय नामक महायज्ञ किया. बल-गर्वित चन्द्र ने यग्य में आई हुई त्रिभुवन-सुंदरी तारा को, जो देवगुरु ब्रहस्पति जी  की ही पत्नी थी, बलपूर्वक अपने घर में ही रख लिया था और उन्ही के वीर्य से वह गर्भवती भी हो गई.श्री मद भगवत, स्कंध ९, अद्ध्याय १४, में लिखा है-सोयाज.............(४)...............सुर्दानाव्विग्रह: अर्थात: चन्द्र ने त्रिभुवन जीतकर राजसूय यग्य किया और घमंड से ब्रहस्पति की पत्नी तारा को बलपूर्वक हर लिया.(४) जब देवगुरु के बार-बार माँगने पर भी चन्द्र ने अपने मद से उसे नहीं छोड़ा तो उसके लिए देवताओं में महासंग्राम हुआ. क्रमश:
आगे जानिये सूर्य,  शराबी बलराम,  रंगीले कृष्ण और  संवेदनहीन राम के बिषय में इनकी कारगुजारियों को वो भी डिटेल में.....में आप मेरे साथ लगातार बने रहिएगा

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