Friday 4 November 2011

सीता की नज़र से देखिए राम का व्यवहार


"हिन्दुइस्म धर्म या कलंक" के सौजन्य से एल आर बालीजी द्वारा लिखित 
आज मैं आपको रामायण के राम के विषय में कुछ अनजाने पहलू से अवगत कराउंगा? आप खुद ही विचार करके देखिए - क्या राम के ये कार्य एक अवतार के रूप में सही ठहराये जा सकते हैं? आपकी टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।
बाली का धोखे से वध :  
राम ने बाली का धोखे से क़त्ल किया. रामायण में बाली ने श्रीराम के चरित्र और व्यक्तित्व का कितना उपर्युक्त चित्र खिंचा है. बाली,राम को संबोधित करते हुए कहते है- "आप हतबुद्धि है।.आप धर्म-ध्वजी है.दिखाने के लिए धर्म का चोला पहने हुए है आप वास्तव में अधर्मी है आपका आचार-व्यवहार पाप-पूर्ण है आप घास-फूंस से ढके हुए कूप के सामान धोखा देने वाले है.(बाल्मीकि रामायण ४-७-२२) आप कामेच्छा के गुलाम है,क्रोधी है,मर्यादा में न रहने वाले है,चंचल है राजाओं की मर्यादा का बिना विचार किये किसी को भी अपने तीर का निशाना बना सकते है." 


शम्बूक की ह्त्या :

बाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड तथा उत्तर रामचरित नाटक में वर्णित राम द्वारा शुद्र तपस्वी शम्बूक की ह्त्या से साफ़ जाहिर है कि श्री राम अत्यंत निर्दयी और अत्याचारी अवतार राजा थे. शम्बूक की हत्या को रामायण में बाल्मीकि ने श्रीराम के ही मुख से इस तरह वर्णन किया है-इस बात को तकरीबन सभी जानते हैं इस प्रसंग में राम ने घोर तपस्या करते शम्बूक से पूछा-"तुम्हे किस वस्तु के पाने की इच्छा है? तपस्या द्वारा संतुष्ट हुए इष्ट-देवता से वर के रूप में तुम क्या पाना चाहते हो-स्वर्ग अथवा दूसरी कोई वस्तु? कौन-सा ऐसा पदार्थ है, जिसके लिए तुम ऐसी कठोर तपस्या करते हो, जो दूसरों के लिए दुष्कर है? तापस ! जिस वस्तु की प्राप्ति की इच्छा के लिए तुम इस घोर तपस्या  में लगे हुए हो, उसे मैं सुनना चाहता हूँ. इसके सिवा यह भी सही-सही बताना की तुम ब्राह्मण हो या दुर्जय क्षत्रिय? तीसरे वर्ग के वैश्य हो अथवा शुद्र? तुम्हारा भला हो, मेरे इस प्रश्न का यथार्थ उत्तर देना.
उस तपस्वी शम्बूक ने उत्तर दिया-"हे महायशस्वी राम! मैं शूद्र योनि में उत्पन्न हुआ हूँ. मैं निसंदेह स्वर्ग लोक जाकर देवत्व प्राप्त करना चाहता हूँ मैं इसलिए यह उग्र तपस्या कर रहा हूँ "काकुत्स्थाकुल भूषण राम मैं झूठ नहीं बोलता . देव लोक पर विजय पाने की इच्छा से तपस्या में लगा हूं आप मुझे शुद्र जानिये मेरा नाम शुद्र है" राम के ही शब्दों में -"उस शुद्र के मुहं से यह बात निकली ही थी, मैंने आव देखा ना ताव, अपने म्यान से तलवार खीच ली और उससे शम्बूक का सिर धड से अलग कर दिया." ये कहानी थोडा कम लिखी है "जब ब्राह्मण ने अपने बेटे की मौत का रोना राम के आगे रोया तब जाकर राम ने  मजबूरन शम्बूक को लुढ़काया था."

सीता के साथ अमानवीय बर्ताव:
अपनी पत्नी सीता पर तो राम ने मुसीबतों के पर्वत ही तोड़ डाले. १४ वर्षों का बनवास काटने के पश्चात् उसके चरित्र पर संदेह किया गया यानी चरित्र की शुद्धता का सबूत देने के लिए उन्हें अग्नि में कूदना पड़ा सीता कहती है-"मेरा चरित्र शुद्ध है, तो भी मुझे दूषित समझ रहे है मैं सर्वथा निष्कलंक हूँ. सम्पूर्ण जगत की साक्षी अग्नि देव ! मेरी रक्षा  करें.""सुमित्रानंदन ! मेरे लिए चिता तैयार  कर दो। मेरे इस दुःख की एक ही दवा है. मिथ्या कलंक से कलंकित होकर मैं जीवित नहीं रह सकती."(बाल्मीकि रामायण ६-२४-१)

अग्नि परीक्षा के बाद भी राम की तसल्ली नहीं हुई.  तंग आकर सीता को कहना पड़ा- "मैं मन, वाणी और क्रिया के द्वारा केवल श्रीराम की ही आराधना करती हूँ. यदि यह कथन सत्य है तो भगवती पृथ्वी मुझे अपनी गोद में स्थान दे.."(बाल्मीकि रामायण ६-९७-१५) और "सभी लोगों के देखते-देखते जानकी (सीता) रसाताल को प्रयाण कर गई."

सीता की आत्महत्या से राम के चरित्र का यह पक्ष की वह कितना निर्दयी और अत्याचारी था, अच्छी तरह उजागर हो जाता है.
शराब पीना और पिलाना :
बाल्मीकि रामायण,उत्तराखंड, सर्ग ४२ श्लोक १७-२१ में राम सीता का राजकीय उद्यान विहार का वर्णन इस तरह किया है-
अशोक वनिका ...१७...पान्वाश्न्गत:(२१) अर्थात : रामचंद्र ने अपने अंत:पुर से सटे हुए समृद्ध राजकीय उपवन में विहारार्थ प्रवेश किया और वे फूलों शोभित तथा ऊपर से कुश या बिछावन बिछाये हुए एक सुन्दर आसन पर बैठ गए. राजा काकुत्स्थ वंश में उत्पन्न रामचंद्र ने सीता जी को हाथ से पकड़ कर पवित्र मेरेय नामक मद्य को,जैसे इन्द्र शची को पिलाते है, वैसे ही पिलाया. चाकर उत्तम पकाए हुए मांस तथा नाना प्रकार के फल रामचंद्र के भोजनार्थ शीघ्र लाये. रामचंद्र के समीप जाकर नाच-गान में प्रवीण अप्सराएँ, नाग-कन्याएं, किन्नरियाँ तथा अन्य गुणी और रूपवती स्त्रियाँ मदिरा के नशे में मतवाली होकर नाचने लगीं.
उपरोक्त लिखित चंद प्रसंग जो की बाल्मीकि रामायण से लिए गए है अब आप ही बताये क्या ये प्रसंग कभी आज तक आपने किसी रामलीला या किसी धारावाहिक में आज तक देखे या सुने है. हाँ कुछ खास घटनाओं को छोड़कर, उसमें भी राम की तारीफ में कसीदे ही गढ़े गए है. क्या कहीं आपने राम को शराब पीते और मांस खाते हुए सुना था.नहीं ना...? मगर ये सच है. एक शुद्र की गर्दन धड से अलग कर देना क्या ये सही किया वो भी इसलिए कि शम्बूक एक शुद्र था. क्या राम का मांस भक्षण करना जायज था. बाली का राम को कोसना यही बताता है की राम ने कितना बड़ा छल किया था. अगर राम वाकई क्षत्रिय थे तो बाली को छुपकर मारने की क्या जरुरत थी पूरे होसले के साथ सामने आकर मारते। तब तो कुछ बात भी थी। रामायण के अनुसार राम को बस आज्ञाकारी जरुर कहा जा सकता है। इसके अलावा उन्होंने कई ऐसे कार्य किए जो सही नहीं ठहराए जा सकते.

4 comments:

  1. गलत बाते न डाले । राम को बदनाम न करे।

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  2. राम को गलत कहने वालों की जुबान काट देनी चाहिये। कुछ लोग अपने को सही साबित करने के लिए हमारे धरम को बदनाम करते है। kirpa करके इन बाते पर ध्यां न दे

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  3. राम को गलत कहने वालों की जुबान काट देनी चाहिये। कुछ लोग अपने को सही साबित करने के लिए हमारे धरम को बदनाम करते है। kirpa करके इन बाते पर ध्यां न दे

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  4. गलत बाते न डाले । राम को बदनाम न करे।

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