Friday 4 November 2011

यजुर्वेद : इस अश्लील संवाद का क्या कहेंगे?


यह ब्लॉग लिखने का उद्देश्य किसी को चिढ़ाना या फिर किसी का दिल दुखाना या  किसी हिन्दू की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना कतई नहीं है ,यह तो अपने रोगी देशवासियों को सच्चाई से रूबरू कराने का छोटा सा प्रयास है डॉ. भीमराव अम्बेडकर के निमन्लिखित शब्द कितने सही है और सच्चे हैं-
"वेदों में मूर्खताओं के सिवा और कुछ नहीं है."-( अंग्रेजी दैनिक 'हिन्दू' मद्रास 25 सितम्बर 1994 )  ये शब्द  1944 के एक भाषण में कहे गए थे उन पर किसी को मुकद्दमा चलाने का साहस नहीं हुआ.बाबा साहब के शब्द "जिन पुस्तकों को पवित्र-ग्रन्थ कहा जाता है वे ऐसी जालसाजियों से परिपूर्ण है जिनकी प्रवृति राजनैतिक है; जिनकी रचना पक्षपातपूर्ण है और जिनका लक्ष्य और प्रयोजन  है कपट और छल. मुझे उन की धमकियों की परवाह नहीं क्योंकि मैं यह भलीभांति जानता हूँ की वे ऐसे जाली मल्लाह है जिन्होंने अपने धर्म की सुरक्षा का बहाना करते-करते उस (धर्म) को व्यापार बना दिया है समस्त संसार में उन जैसा स्वार्थी वर्ग कोई है ही नहीं उन्होंने अपने वर्ग के विशेषहितों  के समर्थन के लिए अपनी बुद्धि को भी नीलामी पर चढ़ा दिया है यह बात कोई कम आश्चर्यजनक नहीं की रूढ़ीवाद के पागल कुत्ते उस मनुष्य पर टूट पड़ते है जिसने इनके पवित्र  ग्रंथों के विरुद्ध आवाज बुलंद करने का साहस किया होता है जो सिद्धांत उनके पवित्र ग्रंथो में दर्ज है,वही उनके समाज और देश के पतन और गिरावट के लिए जिम्मेबार है"(AMBDEKAR :Who were The shudras ? Perface pages  8 & 9 )
मैक्स मूलर के शब्दों में-वेदों के ऐतिहासिक महत्त्व को बढाया-चढ़ाया नहीं जा सकता, किन्तु बहुत सारे लोग उनके तात्विक गुणों,विशेषता भावनाओं के उन्नत-रूप को बहुत ही ऊँचे बताते है वेदों  के मंत्रों की बहुत बड़ी तादाद अत्यधिक  बचकाने है  तो भी वेदों में भाप-इंजन, बिजली, यूरपी-दर्शन और नैतिकता की खोज करना उन को उनके सही स्वरूप से वंचित करना है .वेदों के एकमात्र ज्ञान्स्रोत होने की शेखी बघारने वाले सोचें कि क्या इस शताब्दी में वेदों का अनुसरण करके भारतीय समाज का नवनिर्माण किया जा सकता है?
इन ब्राहमण ग्रंथों का अध्ययन इस प्रकार करना चाहिए जैसे कोई डोक्टर किसी पागल के वृथा बकवाद और चिल्लाहट का निरिक्षण करता है-Max Muller : Ancient Sanskrit Literature , Page 200 (Panini office Edition ) 
वेदों को मूर्खताओं का पुलंदा मानते हुए 'चार्वाक' दार्शनिकों ने अपनी टिप्पणी में कहा था - त्रयो वेदस्य .......कुत: अर्थात- तीन प्रकार के लोगों व्यक्तियों ने यानी कपटियों, भांडों और ठगों ने वेदों की रचना की है. ये बुद्धिमान लोगों की रचनाएं नहीं है- Critique on Vedas P-43  
श्री बी.डी.कोशाम्बी के शब्दों में "the value of thoughts is to be judged by they social advance which  they encourage ."
आज समाज की ऐसी हालत, ब्राहमणवादी विचारधारा के कारण हुई है जिसने हिन्दुओं को रोगी बना रखा है. डॉ. भीमराव आंबेडकर के शब्दों में- "Hindus are the sickmen of India and their sickness is causing danger to the health and happiness of other Indians ." (Dr . Baba Ambedkar Writings and Speeches Vol ) अर्थात- हिन्दू भारत के रोगी लोग है और उनकी बीमारी अन्य भारतीयों की तंदरुस्ती, सुख-शांति व खुशहाली के लिए खतरा पैदा कर रही है. रोगी हिन्दुओं को तंदरुस्त बनाने का यह ब्लॉग एक छोटा सा प्रयास है मुझे आशा है की हमारे इस सही व सच्चे प्रयास पर चिढ़ने की बजाये इसे एक निर्माणात्मक कदम के रूप में परखा और समझा जाएगा.

वेदों की बहस में ज्यादा ना पड़ते हुए मैं आपको इन वेदों क��� कुछ बानगी पेश कर रहा हूँ. अगर किसी भाई को अगर शक हो तो ग्रन्थ खोलकर बताये गए अध्याय पर पढ़ सकता है. मैं आपसे वादा करता हूँ की जो कुछ लिखूंगा वो लाग-लपेट रहित होगा. सबसे पहले अश्लीलता का ही उदहारण लेते है. इस छेड़छाड़ को आप क्या कहेंगे - यकास्कौ शकुन्तिकाह्लागीती वंचती | आ हन्ति गमे निगाल्गालिती धारका || ( यजुर्वेद २३-२२) अर्थात - पुरोहित कुमारी-पत्नियों से उपहास करते है। पहला पुरोहित कुमारी (= लड़की) की योनि की ओर संकेत करके कहता है कि जब तुम चलती हो तो योनि से 'हल-हल' की ध्वनी निकलती है, मानो चिड़ियाँ चहक रही हो। जब योनि में लिंग प्रवेश करता है, तब 'गल-गल' की ध्वनि निकलती है. यकोअस्कैउ शकुन्तक आहाल्गीती वन्चती | विवाक्ष्ट एव ते मुखाम्ध्वयों पा नस्त्वंभी भाष्था: (यजुर्वेद २३/२३) अर्थात- वे पुरोहित के लिंग की ओर संकेत करके कहती है कि हे पुरोहित, तुम्हारे मुंह से 'हल-हल' की ध्वनि निकलती है, जब तुम बोलते हो, तुम्हारा लिंग तुम्हारे मुंह के ही सामान है, क्योंकि इसमें भी छेद है अत: तुम हम से जबान न चलाओ। तुम भी हमारे जैसे ही हो. (मैं शास्त्री जी से प्राथना करूंगा कि ये बातें किन परिस्थितियों में कही गई कृपया करके मुझ खल अज्ञानी को समझाने का प्रयास करे और मेरे ज्ञान रूपी सागर में इजाफा करे.)
अब ज़रा जंगी बातों का भी जिक्र हो जाए." हे इन्द्र ! तुम अपने शत्रुओं को वशीभूत कर लेते हो। इस नास्तिक को वशीभूत करो। यह तुम्हारे स्त्रोता का अहित करता है। इसके विरुद्ध तीक्ष्ण वीर को प्रेरित कर इसे नष्ट कर डालो." (यजुर्वेद ७.२.१८)  (अबे भैये ये हुंकार तो मेरे खिलाफ लगाती है मैं ही सबसे बड़ा नास्तिक हूँ। आजकल सभी देवी-देवता और पुरोहित होस्लेवाला को देखते ही कन्नी काट जाते हैं। कोई मुझे वशीभूत करे या ना करे मगर एनबीटी वालों ने जरुर वशीभूत कर रखा है वर्ना तुम्हारे इन्द्र की तो मैं ऐसी दुडकी लगवाता कि वो भी याद करता कि किस होस्लेवाला से पाला पड़ा है और कहता कि होस्लेवाला भी पूरे होसले के साथ हमारी ...............एक करने पर अमादा है. मैं तो इन्द्र को यही कहूंगा कि धन्यवाद करो ब्लॉग संपादक जी का जो मुझे थो़ड़ा जकड रखा है। अगर संपादक जी थोड़ी से ढील दें तो फिर मजा आये इस खेल का)
अब ये तो मिसाल हुई मक्कारी की, नीचे पढिये कैसे सोम  पान करा  इन्द्र को अपने वश में करने के चक्कर में है ये पुरोहित पण्डे." हे इन्द्र! तुम हमारे यज्ञ को स्वीकार कर हम से संतुष्ट होने वाले व्रत्रहंता सर्वज्ञाता हो मरुतों के सहित सोम पान करो और शत्रुओं को नष्ट करो, उन्हें रणभूमि से भगाओ, फिर हमें सब प्रकार से अभय दान करो" (यजुर्वेद १.२) ( अमां यार, तुम आज तक संतुष्ट नहीं हो पाए हो जब कि चारों ओर तुम्हारा ही वर्चस्व है। लोगों को डरा-डरा कर अपना उल्लू सीधा करने पर लगे हो)।
जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा, अब आप ही बताएं  क्या ये सब वेदों की अच्छी बातें हैं। ये फैसला मैं आप पर ही छोड़ता हूँ। इस विषय में अपनी बेबाक राय रखना ना भूलें। अगर एन बी टी परिवार ने मुझे अपनी बात रखने का मौका दिया तो मैं आपसे वादा करता हूँ अपनी बेबाक राय रखने से कहीं भी नहीं चूकूँगा। ये मेरा अपने आपसे वादा है और आप से भी, जब-जब मुझे मौका मिलेगा मैं आपसे रूबरू होता रहूंगा भले ही मेरे ब्लॉग ब्लॉक ही क्यूँ ना हो जाए। और कुछ नहीं तो फेसबुक सबसे बड़ा हथियार है अपनी बेबाक राय रखने के लिए. ये जो आपने पढ़ा ये तो सिर्फ एक सैम्पल है आगे-आगे आपको जानने के लिए बहुत कुछ मिलेगा एक ऐसा अनजाना सच जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते, मुझे आप किसी भी धार्मिक ब्लॉग पर ढूंढ सकते ....वो भी जब, जब मेरा ब्लॉग  आनलाइन नहीं हुआ तो.....? मैं आजकल धर्म नाम कि साइट पर अक्सर विजिट करता हूँ और धर्म के ठेकेदारों कि बखिया उध��ड़ने से बाज नहीं आता हूँ.

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